डॉ०रामबली मिश्र विरचित वर्णिक चतुष्पदी
डॉ०रामबली मिश्र विरचित वर्णिक चतुष्पदी
कहते रहना शिवराम हरे।
जपते बढ़ना घनश्याम घरे।
प्रभु से मन से नित प्यार करो।
उनसे सबका घर-द्वार भरे।
तन धन्य वही जपता हरि को।
मन सभ्य वही रटता हरि को।
हरि संग रहे वह मानव है।
उर भव्य चला करता हरि को।
शुभ कर्म करो शिव पंथ गहो।
अति स्नेह अथाह समुद्र रहो।
मत क्रोध करो परिताप नहीं।
बन शीतल वायु सुगंध बहो।
रच प्रेम जगो सबमें बसना।
प्रिय नीति सुरज्जु सदा बरना।
सबके मन को अपने मन से।
नित बाँध सदा चलते रहना।
Renu
23-Jan-2023 04:47 PM
👍👍🌺
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अदिति झा
21-Jan-2023 10:34 PM
Nice 👍🏼
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